श्री राधा स्तुति

नमस्ते  परमेश्वरि  रास  मण्डल  वासिनी।
रासेश्वरी नमस्तेस्तु कृष्ण प्राणाधिक प्रिये।।

नमस्त्रैलोक्य  जननि  प्रसीद  करुणार्णवे।
ब्रह्मविष्ण्वादिभिर्देवैर्वन्धमान  पदाम्बुजे।।

नमः  सरस्वती  रूपे  नमः  सावित्रि  शंकरि।
गंगा पप्रवति रूपे षष्ठि मंगल चण्डिके।।

नमस्ते तुलसी रूपे नमो लक्ष्मी स्वरूपिणी।
नमो  दुर्गे  भगवति  नमस्ते  सर्वरूपिणी।।

मूल प्रकृति रूपां त्वां भजामिः करुणार्णवाम्।
संसार  सागरादास्मानुद्धाराम्ब  दयां  कुरु।।

इदं  स्तोत्रं  त्रिसंध्यं  य  पठेद्राधास्मरन्नार:।
न तस्य दुर्लभं किंचित् कदाचिच्च भविष्यति।।

देहान्ते  न  वसेन्नित्यं  गोलोके  रासमण्डले।
इदं  रहस्यं  परमं  न  चाख्येयं  तु  कस्यचित्।।

(देवि-भ- 940-46/52)

कृष्ण त्वदीय पदपंकज पंजरान्ते,
अद्यैव मे विशतु मानस राजहंसैः।

प्राण-प्रयाण समये कफवात पित्तैः,
कण्ठावरोधन विधौ स्मरणं कुतस्तु।।

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