आइए जानते हैं नवरात्रि के पहले दिन आदि शक्ति देवी मां के 9 रूपों में प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की महिमा, उनकी पूजा विधि व मंत्र आदि
हिन्दू धर्म में माता दुर्गा अथवा पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों के विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परंतु यह सब एक हैं।
दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अंतर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नांकित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं :
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।। पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।। नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
आज नवरात्रि का पहला दिन है और आज के दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री, मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं। ये पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। कहा जाता है कि पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में जन्मीं थीं। तब इनका नाम सती था।
मां शैलपुत्री की महिमा :
सम्पूर्ण जड़ पदार्थ भगवती का पहला स्वरूप हैं पत्थर मिट्टी जल वायु अग्नि आकाश सब शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ में परमात्मा को अनुभव करना।
माता शैलपुत्री आयुर्वेदिक महत्व :
कुछ आयुर्वेदिक ग्रंथों के मतानुसार ब्रह्माजी के दुर्गा कवच में वर्णित नवदुर्गा नौ विशिष्ट औषधियों में हैं। आयुर्वेद में तीन विशिष्ट औषधियां कहीं गई हैं, हरड़, बहड़ और आंवला। जिनमें से मां के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री हरड़ स्वरूप है
कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है, जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है। यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है।
माता शैलपुत्री की पूजा विधि :
नवरात्रि प्रतिपदा के दिन कलश या घट स्थापना करें। इसके बाद देवी पूजा का संकल्प लें। फिर माता दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा करें। मां को अक्षत्, सिंदूर, धूप, गंध, पुष्प आदि अर्पित करें। मां शैलपुत्री के मंत्रों का जाप करें। इसके बाद कपूर और घी के दीपक से मां की आरती करें। शंखनाद के साथ घंटी बजाएं। मां को प्रसाद अर्पित करें।
मां शैलपुत्री बीज मंत्र :
ह्रीं शिवायै नम:
माता शैलपुत्री के अन्य विशेष मंत्र :
- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:
- शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी, पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी, रत्नयुक्त कल्याण कारीणी।
- वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
4. प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्। धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥ त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्। सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्।। चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन। मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
माता शैलपुत्री की आरती :
मां शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।।
शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।।