आइए जानते हैं नवरात्रि के दूसरे दिन आदि शक्ति देवी मां के 9 रूपों में द्वितीय स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी की महिमा, पूजा विधि और मंत्र
ब्रह्मचारिणी माता का स्वरूप :
नवरात्रि के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी के तपश्चारिणी रूप की पूजा की जाती है। ये मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति हैं। देवी ब्रह्मचारिणी, पार्वतीजी का ही रूप है, जिन्होंने नारद जी के कहने पर शिव अर्थात ब्रह्म को साधने हेतु व पाने के लिए कठोर तप किया था, इसी कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। मंगल ग्रह पर आधिपत्य रखने वाली ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्मत्व स्वरूपा हैं। ये पूर्ण ब्रह्मस्वरूपिणी और शिवस्वरूपा के नाम से भी प्रसिद्ध है। देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप है अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप है। लौकिक दृष्टि से मां ब्रह्मचारिणी के नाम का अर्थ है- ब्रह्म अर्थात् ब्रह्म तत्व और चारिणी का अर्थ है चलने वाली अथवा आचरण करने वाली देवी। किन्तु ब्रह्मचारिणी का वास्तविक आध्यात्मिक अर्थ है- ब्रह्म तत्व के आचरण का ज्ञान देने वाली देवी।
देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ मे जप की अक्ष माला है और बांए हाथ मे कमंडल सुसज्जित हैं।
मां ब्रह्मचारिणी की महिमा :
जड़ में ज्ञान का प्रस्फुरण, चेतना का संचार, भगवती के दूसरे रूप ब्रह्मचारिणी का प्रादुर्भाव है। जड़ चेतन का संयोग है। प्रत्येक अंकुरण में इसे देख सकते हैं।
माता शैलपुत्री आयुर्वेदिक महत्व :
ब्रह्माजी के दुर्गा कवच में वर्णित नवदुर्गा नौ विशिष्ट औषधियों में भी विद्यमान हैं। हमारे आयुर्वेदिक ग्रंथों और हमारे आयुर्वेद के ज्ञाता ऋषि मुनियों ने कुछ औषधियों को इस ऋतु में विशेष सेवन हेतु बताया है, जिससे हम सभी उसका सेवन कर शक्ति के रूप में शारीरिक व मानसिक क्षमता को बढ़ाकर हम शक्तिवान, ऊर्जावान बलवान व विद्वान बन सकें। नौ तरह की वह दिव्यगुणयुक्त महा औषधियां निस्संदेह बहुत ही प्रभावशाली व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के साथ साथ हमें आजीवन बदलते मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी स्वयं को सक्षम और निरोगी बना कर दीर्घायु प्रदान करतीं हैं
नवदुर्गा के अमूर्त रूप की रूपक जिन औषधि जिनका हमें शीतकाल में सेवन करना चाहिए वह निम्न प्रकार है :
1 हरड़, 2 ब्राह्मी, 3 चन्दसूर, 4 कूष्मांडा, 5 अलसी, 6 मोईपा या माचिका, 7 नागदान, 8 तुलसी और 9 शतावरी।
द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानि ब्राह्मी : ब्राह्मी औषधि आयु व स्मरण शक्ति बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है। इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है। यह मन व मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख औषधि है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में बडी समर्थ दवा है।
आराधना का महत्व :
अत्यन्त मनोहर रूप की देवी माता ब्रह्मचारिणी भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करती हैं। देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती हैं। जो साधक मां के इस रूप की पूजा करते हैं उन व्यक्तियों को ज्ञान सदाचार लगन एकाग्रता तप त्याग वैराग्य और संयम रखने की शक्ति प्राप्त होती है। जीवन की कठिन समय मे भी उसका मन कर्तव्य पथ से विचलित नही होता है और जीवन में वे जिस बात का संकल्प कर लेते हैं उसे पूरा करके ही रहते हैं। देवी अपने साधको की मलिनता, दुर्गुणों ओर दोषो को दूर करती है जिससे जीवन की समस्त समस्याएं एवं परेशानियां समाप्त होती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी को क्या भोग प्रसाद लगाएं ? :
मां भगवती को नवरात्र के दूसरे दिन शक्कर का भोग लगाना चाहिए मां को शक्कर का भोग प्रिय है। ब्रह्मचारिणी देवी को पिस्ते की मिठाई का भोग लगाया जाता है। इस दिन ब्राह्मण अथवा दीन दुखियों जरूरतमंदों को शक्कर खांड बताशे मिश्री और मिठाइयों का दान देना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है।
मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान मंत्र :
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और प्रार्थना करते हुए नीचे लिखा मंत्र बोलें :
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
इसके बाद देवी को अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, सफेद और सुगंधित फूल अर्पित करें। इसके अलावा कमल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं और इन मंत्रों से प्रार्थना करें :
मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र :
- या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।। - दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। - ब्रह्मचारयितुम शीलम यस्या सा ब्रह्मचारिणी।
सच्चीदानन्द सुशीला च विश्वरूपा नमोस्तुते।। - ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः
मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ :
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
मां ब्रह्मचारिणी का कवच :
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी।
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।।
मां ब्रह्मचारिणी की आरती :
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।