माँ सिद्धिदात्री का आध्यात्मिक व आयुर्वेदिक महत्व, मंत्र और आरती आदि

आइए जानते हैं नवरात्रि के नौवें दिन आदि शक्ति देवी मां के 9 रूपों में नवम् स्वरूप देवी सिद्धिदात्री की महिमा, पूजा विधि और मंत्र

मां सिद्धिदात्री देवी का स्वरूप :
नवरात्रि के नौवें दिन मां के देवी सिद्धिदात्री माता के रूप की पूजा की जाती है। माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है।
मां सिद्धिदात्री देवी की महिमा :
भगवती का नौंवा रूप सिद्धिदात्री है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मांतर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा है।

मां सिद्धिदात्री देवी का आयुर्वेदिक महत्व :
ब्रह्माजी के दुर्गा कवच में वर्णित नवदुर्गा नौ विशिष्ट औषधियों में भी विद्यमान हैं। सिद्धिदात्री (शतावरी) : दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री है, जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं। यह बल, बुद्धि  विवेक एवं वीर्य के लिए उपयोगी व उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार औरं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। शतावरी का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इस आयुर्वेद की भाषा में नौ औषधि के रूप में नवदुर्गा  मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित व साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करतीं है। अत: मनुष्य को इन नव दुर्गारूपी नौ औषधियों का प्रयोग करना चाहिये ।

मां सिद्धिदात्री देवी की आराधना का महत्व :
नवरात्रि-पूजन के नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री माता के स्वरूप की उपासना की जाती है। अंतरमन की शक्ति को जगाने का यह नवमा दिन है। साधना के आठ पड़ावों को पार करके जब साधक सिद्धिदात्री के दरबार तक पहुंच जाता है तो करुणामयी मां साधक की हर इच्छा को पूरा कर देती हैं। मां का स्वरूप ही कल्याणक और वरदायक है। क्रियाशीलता का वर देकर वे साधक को उस हर संघर्ष के लिए सक्षम बना देती हैं, जो जीवन संघर्ष में आवश्यक है। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिध्दियों को प्राप्त किया था तथा इन्हें के द्वारा भगवान शिव को अर्धनारीश्वर रूप प्राप्त हुआ।  मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं को भी मां सिद्धिदात्री से ही सिद्धियों की प्राप्ति हुई है। यह देवी इन सभी सिद्धियों की स्वामिनी हैं। मार्कण्डेय पुराण में आठ सिद्धियों का उल्लेख किया गया है : १) अणिमा, २) महिमा, ३) गरिमा, ४) लघिमा, ५) प्राप्ति, ६) प्राकाम्य, ७) ईशित्व और ८) वशित्व। किन्तु ब्रह्ववैवर्त पुराण में अठारह सिद्धियों का वर्णन है जिसमें उपरोक्त आठ के अतिरिक्त 10 अन्य इस प्रकार हैं : ९) सर्वकामावसायिता १०) सर्वज्ञत्व ११) दूरश्रवण १२) परकायप्रवेशन १३) वाक्‌सिद्धि १४) कल्पवृक्षत्व १५) सृष्टि १६) संहारकरणसामर्थ्य १७) अमरत्व १८) सर्वन्यायकत्व। सिद्धिदात्री देवी उन सभी भक्तों को सर्व सिद्धियां प्रदान करती हैं, जो सच्चे मन से उनके लिए आराधना करते हैं। प्रत्येक मनुष्य उनकी आराधना की ओर निरंतर प्रयत्न पूर्वक अग्रसर होकर माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त कर इनकी कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ, मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सिद्धिदात्री माँ के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। ऐसा कहा गया है कि यदि कोई इतना कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर माँ की कृपा का पात्र बन सकता ही है।

मां महागौरी देवी का ध्यान मंत्र :
देवी सिद्धिदात्री माता की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और प्रार्थना करते हुए नीचे लिखे श्लोक मंत्र का उच्चारण करें :

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम॥

स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम दुर्गा त्रिनेत्राम। शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम॥
पटाम्बर,परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम॥

इसके बाद देवी को अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, लाल और सुगंधित फूल अर्पित करें और इन मंत्रों से प्रार्थना करें :

मां सिद्धिदात्री देवी के मंत्र :
1.ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः।
2. ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम
3.सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि | सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ||
4.या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।ङ
5.अमल कमल संस्था तद्रज:पुंजवर्णा, कर कमल धृतेषट् भीत युग्मामबुजा च।
मणिमुकुट विचित्र अलंकृत कल्प जाले; भवतु भुवन माता संत्ततम सिद्धिदात्री नमो नम:।

सिद्धिदात्री स्तोत्र मंत्र पाठ :  
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥

माता सिद्धिदात्री का कवच मंत्र :
ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो।
हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥

मां सिद्धिदात्री की आरती :
जय सिद्धिदात्री मां तू सिद्धि की दाता।
तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता।।
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि।।
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम।।
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदंबे दाती तू सर्व सिद्धि है।।
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो ।।
तू सब काज उसके करती है पूरे।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे।।
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया।।
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अंबे सवाली।।
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा ।।
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता ।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता।। 

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