संतान व पुत्र प्राप्ति हेतु और संतान की दीर्घायु सुख-शांति व समृद्धि के लिए किए जाने वाले व्रत ‘श्रीअहोई अष्टमी व्रत’ (8 नवंबर 2020 रविवार) पर विशेष आलेख :
कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की करक चतुर्थी (करवा चौथ) के चार दिन बाद कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्री अहोई अष्टमी व्रत रखने का विधान है। इस दिन माताएं अपनी संतान की रक्षा और उनकी दीर्घायु की कामना और अपने बच्चों के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहे इसके लिए व्रत करती हैं। निसंतान अथवा पुत्रहीन महिलाएं भी इस दिन संतान / पुत्र प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं।
इस बार कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि 8 नवंबर 2020 रविवार को सुबह 7 बजकर 29 मिनट से लेकर अगले दिन 9 नवंबर की सुबह 6 बजकर 50 मिनट तक रहेगी। अहोई अष्टमी व्रत पूजा का विशेष फलदायी मुहूर्त सायं काल 5 बजकर 37 मिनट से शाम 6 बजकर 56 मिनट के बीच लगभग 1 घंटे 27 मिनट तक की अवधि के मध्य तक रहेगा।
इस अहोई अष्टमी व्रत में अहोई माता और शिव पार्वती के साथ साथ वैष्णवों द्वारा श्रीराधा रानी जी की भी विशेष पूजा की जाती है। इस दिन माताएं दिनभर निर्जला व्रतरखती हैं और रात में तारों को देखकर व्रत खोलती हैं। इस दिन किसी भी प्रकार की नुकीली वस्तु का प्रयोग वर्जित है, इस दिन किसी भी जीव को किसी भी प्रकार से परेशान व नुकसान न पहुंचायें।
अहोई का एक अर्थ यह है भी होता है कि “अनहोनी को होनी बनाना”। श्रीकृष्ण कृपा करते हैं किंतु श्रीराधा रानी कृपा बरसाती हैं। कृपा करने में पात्र – अपात्र अथवा कुपात्र का ख्याल रखा जा सकता है किंतु कृपा बरसाने में पात्र कुपात्र के भेद का कोई औचित्य ही नहीं है। वह तो उसमें अवगाहन करने वालों पर एक समान बरसती है, बिना किसी भेदभाव के, पाप पुण्य के विचार से शून्य। अतः इस दिन संतानहीन या पुत्रहीन दंपत्ति संतान व पुत्र प्राप्ति हेतु और माता पिता अपने संतानों की आरोग्यता और सुख समृद्धि आदि के लिए श्रीराधा रानी की विशेष पूजा करते हैं और श्रीराधा कुंड में स्नान भी करते हैं। अहोई अष्टमी के दिन श्रीराधा जी की पूजा अर्चना और श्रीराधा कुंड में स्नान के प्रचलन के संबंध में पुराणों में एक कथा आती है जोकि इस प्रकार है कि :
एक बार जब फिर से भगवान श्रीकृष्ण के दुष्ट मामा कंस ने कन्हैया को मारने के लिए अरिष्टासुर नाम के एक भयानक राक्षस को भेजा तो वह गाय के बछड़े / बैल का भेष बनाकर, भगवान कृष्ण की गायों के झुंड में मिल गया और छोटे छोटे ग्वालों को मारने लगा, यह देखकर श्रीकृष्ण ने उस राक्षस रूपी बछड़े को पकड़ा और जमीन पर पटक दिया, इससे वह बैल रूपी अरिष्टासुर राक्षस मर गया। इस घटना के पश्चात श्रीराधा और उनकी सखियों ने श्रीकृष्ण से कहा आपको गौ हत्या का पाप लगा है क्योंकि जिस समय आपने अरिष्टासुर को मारा वह गौवंश के रूप में था और गाय को अघन्या या अदिती– अर्थात् कभी न मारने योग्य कहा गया है, इसलिए गो हत्यारे के लिए अत्यंत कठोर दण्ड का विधान है। अतः अब आपको सारे तीर्थों के जल सरोवरों और पवित्र नदियों में स्नान करके आना पड़ेगा, तभी जाकर आप इस पाप से मुक्त हो पाएंगे और अब मैं भी आपसे गौ हत्या के पाप से मुक्त होने पर ही बातचीत करूंगी और मिलूंगी। श्रीराधाजी की इस कठिन शर्त से व्याकुल होकर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें सब तीर्थों का आवाहन किया, जिससे सब तीर्थ उसमें प्रकट हो गए। तब श्रीकृष्ण ने उसमें स्नान किया। इस प्रकार वह गौ हत्या के पाप से मुक्त हो गए।
पुराणों में वर्णन आता है कि श्रीकृष्ण ने कंस के भेजे राक्षस अरिष्टासुर / वृषभासुर का वध करनें के बाद श्रीराधाजी को स्पर्श कर लिया था। अतः राधाजी उनसे कहने लगी की आपने मुझे स्पर्श कर लिया है और अब मैं भी गौ हत्या के पाप में भागीदार बन गई हूं, इसीलिये अब मैं भी सब तीर्थ सरोवरों और नदियों के पावन जल में स्नान कर पवित्र होकर पाप मुक्त होउंगी।
एक अन्य प्रसंग में वर्णन आता है कि श्रीकृष्ण द्वारा प्रकट सर्वतीर्थमय “श्रीश्याम कुंड” में स्नान करने पर जब कन्हैया पाप मुक्त हो गए तो श्रीकृष्ण के सखाओं गोप ग्वालबालों ने श्रीराधा और उनकी सखियों खीझानें के लिए उनसे कहा कि तुमने एक असुर का पक्ष लिया है अतः अब आप भी सब तीर्थों के जल में स्नान कर पाप मुक्त होइये।
इस पर जब श्रीकृष्ण ने राधाजी और गोपियों को अपने उस “श्याम कुंड” में स्नान करने को कहा तो वे भी उलाहना देते हुए कहने लगी कि हम इस गौ हत्या लिप्त पाप कुंड में क्यों स्नान करें? इसमें स्नान करने से हम भी पापी हो जाएंगीं। तब श्रीराधाजी ने उस ‘कृष्ण कुंड’ की पश्चिम दिशा में अपने हाथों के कंगन (कंकण) से एक कुंड खोदना शुरु किया और एक दिव्य मनोहर सरोवर तैयार कर लिया। श्रीराधाजी के स्मरण करने पर सभी तीर्थ वहां प्रकट हुए और उस कुंड में विद्यमान हो गए। तत्पश्चात राधाजी एवं उनकी सभी सखियों ने उसमें स्नान किया।
श्रीराधा कुंड के निर्माण से श्रीकृष्ण अति प्रसन्न हुए कि अब उनके और राधाजी के मिलन में कोई बाधा नहीं रही और अब वह नित्य मिल पाएंगे। श्रीकृष्ण ने पुनः अपनी बांसुरी से श्रीराधा कुंड और श्याम कुंड के मध्य के कुछ भूमि स्थान को खोदकर दोनों कुंड सरोवरों को एक कर दिया, इसप्रकार दोनों कुंड एकाकार हो गए।
यदि कृष्ण शरीर है तो राधा आत्मा है। ये दो नहीं एक ही हैं, कृष्ण के बिना राधा और राधा के बिना कृष्ण नहीं रह सकते हैं। श्रीराधा कृष्ण रास – द्वैत और अद्वैत का मिलन है। जब दो आत्माएं एक रस हो जाए बस वही प्रेम है और वही रास भी। जिसमें जीवन के सारे रस समाहित हो और वे स्वार्थ से कोसों दूर हों, बस वही प्रेम रास है। दरअसल इस संसार का हर वह व्यक्ति अथवा हर वह आत्मा जो कृष्ण को पाने की चाह रखे और दिन भर उसके बारे में सोचे वह गोपी है, लेकिन जो आत्मा कृष्ण से एक रूप होकर अभिमान से दूर हो, बस वही राधा है। जब ये स्थिति आती है तो फिर राधा-कृष्ण से दूर रह सके या न रह सके, लेकिन कृष्ण-राधा से दूर नहीं रह सकते।
ये दोनों कुंड श्रीराधा कृष्ण के दिव्य और अलौकिक प्रेम को आज भी जीवंत रखे हुये हैं । आज भी अंदर से दोनों कुंड जुड़े हुये हैं, लेकिन बाहर से अलग-अलग दिखते हैं। एक अद्भुत बात यह भी है कि श्रीराधा कुंड श्रीराधा जी की भांति ही सीधा व चौकोर है और इसका पानी भी सफेद है जबकि श्रीश्याम कुंड श्रीकृष्ण की ही भांति वक्री टेढ़ा मेढ़ा व आड़ा तिरछा है और इसका जल भी थोड़ा श्याम वर्ण है। ये दोनों कुंड गिरिराज श्रीगोवर्धन जी महाराज के दो नेत्रों की तरह स्थित हैं।
अतः इस प्रकार कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी (श्री अहोई अष्टमी) को श्रीराधा कुंड का प्राकट्य हुआ था। कार्तिक कृष्णाटमी को राधा कुंड जयंती के अवसर पर श्रीराधा कुंड पर बहुत बड़ा मेला लगता है और दूर-दूर से श्रद्धालु इस कुंड में स्नान करने आते हैं। श्रीराधा कुंड में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और संतान सुख मिलता है। राधा कुंड के तट पर श्रीअहोई माता का एक अत्यंत प्राचीन मंदिर भी स्थित है। एक मान्यता के अनुसार देवी अहोई माता श्रीराधा रानी जी का ही एक स्वरूप मानी जाती हैं। अहोई अष्टमी की रात्रि को भक्ति भाव से श्रीराधा कुंड में स्नान करने वाले पुत्रहीन दंपत्ति को पुत्र, संतानहीन दंपत्ति को संतान और प्राणघातक रोग से पीड़ित संतान की प्राण रक्षा निसंदेह होती है। राधा कुंड में वर्ष भर में किसी भी समय भक्ति भाव से स्नान करते समय श्रीराधा कृपा कटाक्ष और श्रीकृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को न केवल आरोग्य सुख शांति समृद्धि ऐश्वर्य आदि और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है बल्कि श्रीराधाकृष्ण के चरणों में अविचल भक्ति की भी प्राप्ति होती है और वह श्रीराधाकृष्ण के निज-धाम गोलोक-धाम में उनके निज-परिकर-मंडल में सम्मिलित हो जाता है।
यह “श्रीराधा-कृष्ण-कुंड” उत्तर प्रदेश के ब्रज मंडल के मथुरा जिले के गिरिराज गोवर्धन जी की परिक्रमा मार्ग में स्थित हैं, जोकि मथुरा या गोवर्धन से चार पांच किलोमीटर और वृंदावन से पंद्रह बीस किलोमीटर तथा बरसाने से पच्चीस तीस किलोमीटर, आगरा से करीब 70 – 80 किलोमीटर और दिल्ली से लगभग 125 – 150 किलोमीटर दूरी पर स्थित हैं।
अहोई अष्टमी व्रत का पूजा विधान :
कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि को देवी अहोई माता का गोबर से कपड़े पर आठ कोष्ठक का एक चित्र बनाया जाता है और उसमें बच्चों की आकृतियां भी बनाई जाती हैं। माताएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखने के बाद शाम को या प्रदोष काल उसकी पूजा करती हैं। करवाचौथ में इस्तेमाल किए गए करवे में जल भर लिया जाता है। शाम को अहोई माता के व्रत की कथा सुनने के बाद माता की विधि विधान से पूजा अर्चना के बाद उन्हें फल, फूल और मिठाई का भोग लगाते हैं। मान्यता है कि अहोई माता की पूजा करके उन्हें दूध-भात (खीर) का भोग लगाना शुभ होता है। सर्वविदित है कि दूध-भात (खीर) श्री राधारानी जी का सर्वप्रिय भोग है। इसके बाद तारों को करवे से अर्घ्य देने के बाद रात में व्रत का समापन किया जाता है। इसके बाद अन्न-जल ग्रहण किया जाता है। उस करवे के जल को दीपावली के दिन पूरे घर में छिड़का जाता है।
अहोई माता की कथा :
एक समय की बात है कि एक साहूकार के 7 बेटे थे और एक बेटी थी। साहूकार ने अपने सातों बेटों और बेटी की शादी कर दी थी। अब उसके घर में सात बेटों के साथ सात बहुएं भी थीं। साहूकार की बेटी दिवाली पर अपने ससुराल से मायके आई थी। दिवाली पर घर को लीपना था, इसलिए सारी बहुएं जंगल से मिट्टी लेने गईं। साहुकार की बेटी भी अपनी भाभियों के साथ चल पड़ी। साहूकार की बेटी जहां मिट्टी खोद काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। उसकी 6 बडी भाभियों में इंकार कर दिया किन्तु सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहु से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है? जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मुझ से मांग ले। साहूकार की बहू ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं। अगर आप मेरी कोख खुलवा दें तो मैं आपका उपकार मानूंगी। गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली।
रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
वहां छोटी बहू स्याहु की भी सेवा करती है. स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है और कहती है कि घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना। सात सात अहोई बनाकर सात कड़ाही करना। उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बैंठीं हुई मिली। वह खुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई। उसने सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देकर उद्यापन किया। इस प्रकार साहूकार की छोटी बहू ने अहोई माता की कृपा से ‘अनहोनी को होनी’ करके दिखा दिया। जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकार की बहू की कोख को खोल दिया, उसी प्रकार वे इस व्रत को करने वाली सभी नारियों की अभिलाषा भी पूर्ण करें।
अहोई माता की आरती :
जय अहोई माता, जय अहोई माता।
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता।।
………… जय अहोई माता ……….
ब्राहमणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।।
……….. जय अहोई माता ……….
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।।
……….. जय अहोई माता ……….
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।।
……….. जय अहोई माता ……….
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।।
……….. जय अहोई माता ……….
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।।
……….. जय अहोई माता ……….
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।।
……….. जय अहोई माता ……….
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।।
जय अहोई माता, जय अहोई माता।
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता।।
………… जय अहोई माता ……….