श्रीराधारमण जी की प्राकट्य लीला कथा प्रसंग

आज वृंदावन स्थित श्रीराधारमण मंदिर में गोस्वामी श्री गोपाल भट्ट जी सेवाइत श्रीराधारमण लालदेव जी का प्राकट्य दिवस है। गोस्वामी श्री गोपाल भट्ट जी श्रीराधाकृष्णजी के संयुक्त भावावतार श्री चैतन्य महाप्रभु जी के शिष्य और सप्त गोस्वामियों में से एक प्रमुख गोस्वामी हैं। लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व श्री गोपाल भट्ट जी के पास श्री राधारमण जी शालिग्राम शिला के रूप में थे और वे बडी तन्मयता और श्रद्धा से उनकीं सेवा करते थे। गोस्वामी श्री गोपाल भट्ट जी सेवाइत उस शालिग्रामजी के विग्रह (मूर्ति) रूप में परिवर्तित अवतरित होने की कथा इस प्रकार हैं कि :

उन दिनों किसी वैष्णव ने सभी विग्रहों के श्रृंगार पोशाक आदि प्रदान किए थे तो गोपाल भट्ट जी के मन में आया कि मेरे शालिग्राम भी यदि विग्रह होते तो मैं भी इन्हें श्रृंगार वस्त्र पोशाक धारण कराता। उस दिन श्री नरसिंह जयंती थीं, तो गोस्वामी श्री गोपाल भट्ट जी के हृदय में यह भाव आया कि प्रभु जैसे प्रह्लाद के लिए आप नरसिंह रुप में खंभे से प्रकट हुए, क्यों नहीं आप उसी प्रकार से इस शालिग्राम से मेरे लिए भी विग्रह रूप में प्रकट हो जाओं। रात्रि को यह चिंतन करते करते सो गए और भक्तवांछाकल्पद्रुम ठाकुरजी अपने भक्त की भावनाओं की पूर्ति के लिये प्रातः काल आज के ही दिन (वैशाख पूर्णिमा को) उस शालिग्राम शिला में से श्री राधारमण जी के श्रीविग्रह के रुप में परिवर्तित हो गयें और गोस्वामी श्री गोपाल भट्ट जी सहित सभी भक्तों को विग्रह रूप में विराजमान हो कर दर्शन देने लगे। यहां अब भी नित्य अत्यधिक विधि विधान से भावपूर्वक सेवा होती है और ठाकुरजी को लाड़ लड़ाया जाता है। वैशाख पूर्णिमा को प्राकट्य दिवस उत्सव के अवसर पर आज के दिन वृंदावन स्थित इस श्रीराधारमण मंदिर में श्री राधारमण जी का अद्भुत अभिषेक होता है। यह अभिषेक उसी प्रकार से ही होता है जैसे जन्माष्टमी के दिन होता है। आज श्री राधारमण जी के प्राकट्योत्सव पर ठाकुरजी को शत शत नमन वंदन प्रणाम।

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