30 अगस्त श्री वराह जयंती पर विशेष
आज मंगलवार, दिनांक 30 अगस्त 2022 को भगवान विष्णु के तीसरे अवतार भगवान वराह जी की जयंती है। आपको परिवार सहित ‘श्री वराह जयंती’ की पावन बधाइयां एवं हार्दिक शुभकामनाएं।
सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक कथा प्रसंगो, स्तोत्रों, तीर्थ स्थानों, संत महात्माओं, तीज त्योहारों व उत्सवों विषयक जानकारी से संबंधित हमारी वेबसाइट व यूट्यूब चैनल ‘श्री हरि कृपा डॉट कॉम’ (http:// sriharikripa .com) Website & YouTube Channel पर पढिए ‘वरिष्ठ साहित्यकार एवं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के विद्वान प्रोफेसर डॉक्टर योगेंद्र मिश्र जी” द्वारा लिखित भगवान के वराह अवतार और उनके द्वारा असुर हिरण्याक्ष का वध कर रसातल से पृथ्वी उद्धार स्थली व सनातन तीर्थ शूकर क्षेत्र सोरों से संबंधित एक शोधपरक आलेख।
प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र मिश्र
शूकरक्षेत्र सोरों एक सनातन तीर्थ है। यह पुण्य-तीर्थ भारत के उत्तरप्रदेश के कासगंज जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर मथुरा-बरेली राजमार्ग पर, सातवें- वैवस्वत-मन्वन्तर में अवतरित भागीरथी गंगा के तट पर अवस्थित है। यह पावन तीर्थ पृथ्वी उत्पत्ति स्थल, वैश्विक संकल्प-‘श्रीश्वेत वराहकल्पेआदिवराहश्री शूकरक्षेत्रे’ की उद्घाटन भूमि, श्रीवेदव्यास प्रणीत विविध पुराणों में अनेक विधि रूपेण वर्णित, ब्रह्मांडमें 5 मंडलों के निर्माता भगवान वराह ही हैं, आदिवराह, महावराह, यज्ञवराह, श्वेतवराह, ब्रह्मवराह, एमूषवराह, नरवराह, लिंगवराह आदि अवतारों की प्रादुर्भाव एवं तिरोभाव भूमि, छठवें चाक्षुष मन्वन्तरमें आदिगंगाकी प्राकट्यभूमि, मासानाम मार्गशीर्षोहम्’ (गीता-10.35) ‘एकाहम मार्गशीर्ष्याम च द्वाद्श्याम सितवैष्णवम् (वपु. 179)’ से एकादशी उत्पत्तिभूमि, इसी दिन उपोसित भगवानवराह का द्वादशीके दिन लीलाधाम गमनभूमि, सांख्यशास्त्र प्रणेता महर्षि कपिलमुनि तथा सहस्रों देव-ऋषिगणों की तपोभूमि, भगवान श्रीकृष्ण, बुद्ध, पांडवों, सिखों के छठवें गुरु हिन्दू पदसच्चापातशाह हरगोविंदसाहब, पुष्टिमार्ग प्रवर्तक विष्णुस्वामीप्रज्ञाचक्षुस्वामीबिरजानन्द, महाकवि पद्माकर, चैतन्य महाप्रभु की यात्रा एवं विहारभूमि, आचार्यवल्लभ की 23वीं भागवतभूमि, श्रीरामचरितमानस के कालजयी कवि, सनातन धर्मके चल विश्वविद्यालय गोस्वामी श्रीतुलसीदास जी, उनकी पत्नी रत्नावली, उनके चचेरे भाई अष्टछाप महाकवि नन्ददास की जन्म-क्रीडा एवं विद्याभूमि, आर्य समाज प्रवर्तक स्वामी दयानन्द व बदरियानिवासी पंडित अंगदराम शास्त्री की शास्त्रार्थभूमि, पांडवपौत्र राजाजनमेजय की साधनाभूमि, भारत के साढ़े तीन वटों में से एक ‘गृद्धवट, ‘भारतके साढ़े तीन श्मशानों में से एक महाश्मशान (जहाँ नित्य लगभग 1000 श्मशानों से अस्थियाँ विसर्जन हेतु आती हैं), भारत के सप्तक्षेत्रों में से एक परम पावन शूकरक्षेत्र, मुगल सम्राट अकबर को पीने हेतु गंगाजल की निर्यात भूमि, थानेश्वराधिपति राज्यवर्धन का शशांक के साथ शरीरांत भूमि, कन्नोजाधिपति जयचंद व दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की स्वयम्वर भूमि, नाथसम्प्रदाय से अनुस्यूत तथा सनातनकालसे अनेकानेक ऐतिहासिक, पौराणिक, पुरातात्विक, साहित्यिक, सांस्कृतिक-महानताओं से ओतप्रोत गंगातटवर्ती शूकरक्षेत्र सोरों सनातन तीर्थ ललाट धरती पर एकमेव है, जहाँ आजभी घोर कलिकाल में विसर्जित अस्थियाँ 72 घंटों में रेणु रूप होती हैं, ऐसा विज्ञान सम्मत, प्रयुक्त है। किसी भी देवनदी में अस्थि नहीं गलती। शंकराचार्य परम्परा में सेवित अलौकिक” श्रीयंत्र” की उपासना भूमि, (निकट भविष्य में आद्यशंकराचार्यके श्रीविग्रहका अनावरण होगा)। शैव.शाक्त.वैष्णवोंकी त्रिवेणीके साथ समन्वयकीभूमिहै। रामानंदियों की तो गुरु गादी है। “पंचयोजनविस्तीर्णेशूकरेहरिमन्दिरे” सोरों की 25 कोस चतुर्दिक सीमा से तथा विदेशों से भी अग्नि संस्कार हेतु मिट्टी आती है।
ऐसे दिव्य मुक्तितीर्थ ‘परमसौकरवमस्थानम् सर्वसंसारम मोक्षणम्’, (व.पु.137) में लगभग एक हजार तीर्थयात्रियों द्वारा पिंडदान-श्राद्ध-तर्पण कर्म आदि नित्य होते हैं। जहां नेपाल नरेश द्वारा जीर्णोंद्धारित श्रीवराह मंदिर शोभित है, तथावराहपुराणोक्त चौंसठ मोहल्ले आज भी हैं, जो अनुसन्धानाभाव में लुप्त हो रहे हैं।
‘यत्र भागीरथी गंगा मम सौकरवेस्थिता’
लगभग एक अरब पिचानबे करोड़ अठ्ठावन लाख पचीस हजार एक सौ बीस वर्ष पूर्व वर्तमान सृष्टिका उद्भव हुआ था, उस समय से अब तक वराहवैदिकदेव के द्वारा उसके पश्चात् चाक्षुषमन्वंतर में भगवान शूकरवराहके द्वारा हिरण्याक्ष वध के पश्चात यह पवित्र भूमि सिद्ध क्षेत्र के रूप में मानी जाती रही है।
आज भी विक्रमी 11वीं तथा 12वीं से भी प्राचीन शिलालेख शूकरक्षेत्र सोरों में विद्यमान हैं, और अनेक इसके भूगर्भ में सन्निहित हैं। लगभग 2000 वर्ष पूर्व यह तीर्थ स्थल भगवान बुद्धका और अनेक उनके अनुयायियोंका भी ज्ञानक्षेत्र रहा है। इस तीर्थसे तक्षशिला तक सीधा तथा गंगा में नावों द्वारा वर्तमान कोलकाता तक व्यापार होता था, यह तीर्थ बढ़ा समृद्ध था, विद्या का केंद्र था, बौद्ध साहित्य में इसके ज्ञान के उत्कर्ष का वर्णन है।
चालुक्य क्षत्रिय इसी सिद्धक्षेत्र में चुलुक जलपान कर राजवंश कहलाये, उन्हीं की शाखा सोलंकी और वघेलाओं ने उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक विजय वैजयंती फहराई, अयोध्या में भी इस तीर्थके चालुक्यों द्वारा लगभग 85 राजाओं ने राज्य किया था ऐसा भारतीय पुरातत्ववेत्ता स्मरण करते हैं, अयोध्याके शिला लेख में वराहकी मूर्ति अंकित है।
चालुक्योंकी राजपताकामें गंगा-वराहकीमूर्ति, उनके सिक्कोंमें भी अंकित थी। ये सिक्के ब्रिटिश म्यूजियममें हैं, दक्षिण भारतके उटकमंडमें‘हर्षवर्धन-शशांक युद्धका अभिलेख’ इसी तीर्थ में हुआ, ऐसा सुरक्षित है।
मेवाड़ नरेश महाराणा प्रताप ने सोरों में तुलादान किया था, जयपुर नरेश ने पितृदोष तथा कुष्ठ रोग की निवृति हेतु हरिपदी गंगा के घाटों का जीर्णोद्धार कराया था, ऐसे ‘युगयुगीन शूकरक्षेत्र सोरों’ में भारतीय सांस्कृतिक-रिक्थका अपरिमेय-भंडार है, सामाजिक इतिहास की सुदीर्घ थाती है, जिसका संरक्षण अत्यावश्यक है। पौरोहित्य कर्मका प्रधानकेंद्र है, आगम-निगम, हिंदी संस्कृत वांग्मय के शताधिक-ग्रन्थोंमें सोरों तीर्थका सविस्तार उल्लेख है।
श्री अटलबिहारी वाजपेयी का सोरों से आत्मीय लगाव था, उनके हाथों पश्चिमी तटों के घाटों का 26 जनवरी 1971 को शिलान्यास हुआ था, राजमाता सिंधिया ने जनसंघ संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा का 24 मार्च 1973 को अनावरण किया था, पंडित दीनदयाल उपाध्याय का भी सोरों से नैकट्य रहा, संघ के चतुर्थ व पंचम सरसंघ चालक का इस तीर्थ से आन्तरिक नेह रहा, रज्जूभैया व अटल जी की तो अस्थियाँ भी सोरोंमें श्री कलराज मिश्र, राज्यपाल-राजस्थान द्वारा विसर्जित हुईं, प्रधानमन्त्री निवास में अटलजी ने लेखक की पुस्तक ‘कथासु सूकरखेत’ का दिस० 2001 में विमोचन किया था। भारतीय इतिहास संकलन समितिके संस्थापक श्रीमोरोपंत पिंगले जी ने इस तीर्थ के एतिहासिक स्वरूप को ग्रन्थाकार की योजना बनबाई थी।
संजय खान द्वारा निर्देशित धारावाहिक ‘जय हनुमान’में गलत प्रसारण पर दूरदर्शन पर क्षमा मांगी, तत्कालीन सूचना मंत्री अरुण जेटली ने लेखक को सलाहकार बनाया, मलाया विश्वविद्यालय, मलेशिया तथा भारत सरकार के प्रतिनिधि रूप में 11 वें विश्व हिंदी सम्मेलन, मारीशस में सुषमा स्वराज की अध्यक्षता में ’सोरोंतीर्थ’ पर शोध प्रपत्र का वाचन किया। 22 जुलाई 2018 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने शूकर क्षेत्र सोरों को पर्यटन/तीर्थ रूप में विकसित करने की घोषणा भी की थी। उ०प्र० सरकार द्वारा प्रायोजित संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में 22-23 फरवरी 2020 को “पुराणवर्णित उत्तर प्रदेश के प्रमुख तीर्थ” पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में तुलसी/तीर्थ अध्येता के रूपमें ‘सनातनतीर्थ; शूकरक्षेत्र सोरों’ पर लेखक ने विशेष व्याख्यान दिया। 1985 में तत्कालीन सरकार ने अपने गजट में इस तीर्थ की महत्ता को विवेचित किया है । आजादी के तीसरे दशक में राष्ट्रपति द्वारा पूर्वोत्तर रेलवे तथा डाकघर के नाम को “शूकरक्षेत्र सोरों” गजट किया गया। तीर्थकी गरिमा के कारण, “तुलसीदास” फिल्म की शूटिंग प्रस्तावित है ।
मीडिया के माध्यम से इस तीर्थ की महिमा से भारतीय जनमन सुपरिचित होंगे। ऐसे सनातन तीर्थ को सरकार यथाशीघ्र पर्यटन/तीर्थ सूची में समायोजित करने का शासनादेशकी अधिसूचना जारी करे। साथही कासगंजजिलाका नामकरण ‘तुलसीदासनगर’, शूकरक्षेत्र सोरों शोध-संस्थान, गोस्वामी तुलसीदास अकादमी, महिला साक्षरता 9%कारण रत्नावली राजकीय कन्या महाविद्यालय, शूकरक्षेत्र सोरों तीर्थ विकास प्राधिकरण का गठन, पंचक्रोशी परिक्रमा मार्ग का गिरिराज परिक्रमा की तर्ज पर समग्र विकास, पुरोहित प्रशिक्षण केंद्र, गोस्वामी श्रीतुलसीदास वेद वेदांग पाठशाला, रामायण, सर्किट के अधीन समायोजन, इंडोनेशिया की तरह रामकथा केंद्र, रूस की तरह दैनिक रामलीला केंद्र, मारीशस की तरह रामायण सेंटर की स्थापना, राजा सोमदत्त सोलंकी के किले का जीर्णोद्धार, गुरु नरहरिदास सार्वजनिक पुस्तकालय, “वार्षिक कुम्भ: शूकरक्षेत्र महोत्सव ‘मेला मार्गशीर्ष” का संस्कृति, पर्यटन विभाग, द्वारा संयोजन-संचालित हो, जिले का ‘केन्द्रीय विद्यालय’ स्थापित हो, गोस्वामी तुलसीदास एयरपोर्ट बने, रेलवे स्टेशन के निकट पालिका संचालित प्रसूतिगृह को अत्याधुनिक सुविधायुक्त ‘रत्नावली महिला प्रसूतिगृह’ नामकरण व नर्सेस कोर्सेस के साथ प्रारम्भ, गोस्वामी तुलसीदास मेडिकल कालेज की स्थापना, वनविभाग द्वारा “पितरों की स्मृति में “पितर स्मृति उद्यान” लगभग 20 लाख तीर्थ यात्री वर्ष भर धर्मयात्रा करते हैं। पर्यटन विभाग पीसीएल की पत्रावली शीघ्र कार्यान्वित हो ।
उत्तर भारत में मालवा, शेखावाटी, ढुढार, मेवाड़, निमाड़, तोमरघार, हाडोती, डांग, सिकरवारी, गोंडे, मेवात, दिल्ली के तमरवाडी, पार, गुजराती, बंगाली, पंजाबी, के अलावा नेपाल, लन्दन आदि स्थानों, देशों में यह तीर्थ “सोरमजी गंगाजी घाट” के नाम से सुविख्यात है। गंगा-यमुना के गर्भ का यह परम पावन तीर्थ ’व्रजतीर्थ विकास परिषद’ के साथ सन्नद्ध हो। इसी तीर्थ में आदिगंगा के अतिरिक्त उत्तरवाहिनी भागीरथी गंगाजी तीर्थ की नगरपालिका के बार्ड क्रमांक 8 तथा 14 (लहरा) में प्रवाहित हैं, शूकरक्षेत्र सोरों को ज्ञान, तप, साधना, मोक्ष की वसुंधरा होने के कारण छोटी काशी भी कहा जाता है। गर्ग-सहिंता में यह तीर्थ मथुरा व्रजप्रदेशान्तर्गत उपव्रज में ही है, ऐसी उद्भावना है।
गोस्वामी तुलसीदासजीके शब्दों में, “मैं पुनि निज गुरु सन सुनी कथा सु सूकरखेत” (बाल कांड 30क) भारत सरकार के ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’को चाहिए कि आज़ादी के अमृत महोत्सव में स्वर्णिम भारत को वैज्ञानिक चर्मोत्कर्ष की ओर ले जाने वाले कार्य मूर्त रूप लें,
• “मार्ग शीर्ष शुक्ल एकादशी को “पृथ्वी उत्पत्तिदिवस” मनाए।
• तिरुवनंतपुरम की तरह शूकरक्षेत्र सोरों में “राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र” की स्थापना।
• सोरों में पृथ्वी के ठोस बिंब आकृति स्थापित हो, जो एशिया में सबसे बड़ा स्तूप हो।
सन 1998 में ‘तीर्थ विकास समिति’के आयोजन में प्रथम बार श्री वराह जयंती बड़े स्तर पर मनाई गई। 40 हजार के बजट में एक कुंतल पंचगव्य से श्री वराह का अभिषेक तथा नगर में वितरण, पृथ्वी सूक्त से यज्ञ, ‘पृथ्वी उत्पत्ति स्थल: विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी, भव्य बेंड बाजा के साथ शोभायात्रा, दीपदान आदि कार्यक्रम हुए। पहली जयंती में विश्व हिंदू परिषद के श्री अशोक सिंघल, ओंकारभावे, सुनील शर्मा, स्वामी रामचन्द्र गिरि, आचार्य वेदव्रत शास्त्री, उमाशंकर शर्मा, डॉ योगेन्द्र पचौरी, भगवान सहाय बरबारिया, शिवशंकर स्थापक, रामकिशोर दुबे सलौने आदि के सहयोग से जयंती की नींव डाली गई। आज भव्य वटवृक्ष रूप में आयोजन होता है।
“कासगंज जनपदपुरी पटियारी- न्यारी इक
“खुसरो अमीर” जहाँ- जनम- धरायो है,
भागीरथी- नीर –तीर- तीरथ बसत “सोरों”
जहाँ “मातु हुलसी” ने “तुलसी” जनायो है ।
हरिपदी गंग- तीरे मन्दिर वराह सोहे ,
जाको जस वेद ओ पुरानन हू गायो है,
याही ठौर आई “हरि शूकर” को धारयो वेष ,
जाहि सो जि धाम क्षेत्र “शूकर कहायो” है ।