राम आत्मा. सीता हृदय और रावण कुटिल बुद्धि के प्रतीक है, रावण रूपी कुत्सित विचार हमारे शुद्ध पवित्र ह्रदय को भ्रमित कर अपावन करने की चेष्टा करतें हैं। किंतु लक्ष्मण रुपी चेतना और हनुमान रूपी साहस और अंतर्ज्ञान की सन्निधि एवं आत्मबल; किसी भी प्रकार की दुर्बुद्धि और दुर्गुणों से हमारे हृदय की सहज पावनता को संरक्षित रखते हैं। अर्थात् अंतःकरण की निर्मलता चेतना विवेक एवं अंतर्ज्ञान के बल पर ही निज स्वार्थों को दहन कर और दया परोपकार परस्पर प्रीति आदि दैवीय गुणों को हृदयंगम करके ही दैहिक दैविक भौतिक सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त होकर ही हम सुख शांति की सत्ता को प्राप्त कर सकते हैं। यही विजयदशमी पर्व का निहितार्थ है।
~ मनोज शर्मा, चार दिशाएं