जयति श्रीराधिके सकल सुख साधिके, तरुनि मनि नित्य नव तन किसोरी। कृष्ण तन नील घन रूप की चातकी, कृष्ण मुख हिम-किरन की चकोरी।। कृष्ण दृग-भृंग विश्राम हित पप्रिनी, कृष्ण-दृग मृगज बंधन सुडोरी। कृष्ण अनुराग मकरंद की मधुकरी, कृष्ण गुन-गान रस-सिंधु-बोरी।। बिमुख पर चित्त ते चित्त याकौ सदा, करत निज नाह की चित्त चोरी। प्रकृत यह …