दानवेंद्र बलि की दानशीलता से द्रवित हो द्वारपाल बन गए विष्णुवतारी वामन जब जब होई, धरम कै हानि।बाढ़हि असुर, अधम अभिमानी।।करहि अनीति, जाई नहीँ बरनी।सिदही विप्र, धेनु सुर धरनी।।तब तब प्रभु धरि, विविध शरीरा।हरहिं कृपा निधि, सज्जन पीरा।। अर्थात : जब जब धर्म का ह्रास होता है और नीच अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं, और …